साहित्य और समाज पर निबंध
प्रस्तावना -
साहित्य किसी भी समाज का आईना होता है । साहित्य के आलोक से समाज में चेतना का संचरण होता है । समाज के निर्माण में योगदान देता है और समाज के द्वारा ही पुनः साहित्य का निर्माण होता है । अत : कहा जा सकता है कि
साहित्य और समाज एक - दूसरे के पूरक है ।
साहित्य क्या है ? -
प्रश्न उठता है कि साहित्य क्या है तो आचार्य जगन्नाथ ने सच ही कहा है कि , ' रमणीयार्थ : प्रतिपादक, शब्द , काव्यम् ' अर्थात् रमणीय अर्थ के प्रतिपादक कहते हैं । रमणीय शब्द एवं अर्थों के साहित्य को साहित्य कहते हैं । रमणीय अर्थात् सत्यम् , शिवम् और सुदरम् का समन्वययुक्त भाव है । " हितेन यह साहितेन् तस्य भावं साहित्य " अर्थात् साहित्य वह है , जिसमें हित की भावना हो , जिसमें समष्टि का हित हो ।
समाज क्या है ? -
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और जन्म से लेकर मृत्यु तक मनुष्य समाज से जुड़ा रहता है । आप इसका विस्तृत रूप हमारे सामने है ।
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साहित्य पर समाज का प्रभाव -
तत्कालीन सामाजिक परिस्थितियाँ साहित्य को प्रतिबिंबित करती हैं । यदि हम किसी भी समाज या जाति के उत्थान पतन , आचार , व्यवहार , सभ्यता , संस्कृति इत्यादि को देखना चाहते हैं , तो हमें उस समाज के साहित्य का अध्ययन करना होगा । उत्कृष्ट साहित्य का निर्माण संसार में उस समाज विशेष की एक विशिष्ट पहचान निरूपित करता है ।
समाज पर साहित्य का प्रभाव -
साहित्य मनुष्य को गतिशीलता प्रदान करता है यदि समाज अपने अनुसार साहित्य का निर्माण करता है तो साहित्य समाज को अपनी विचारधारा से बदलने का प्रयास करता है । अंधविश्वासों , कुरीतियों , रूढ़ियों एवं पिछड़ी मानसिकता के अंधकार से दूर एक नई रोशनी दिखाता है ।
साहित्य और समाज का संबंध -
दोनों का आपस में घनिष्ठ संबंध है । मनुष्य की उज्जवलतम् चेतना का वरदान है साहित्य । यह शक्ति का स्रोत है यह स्वान्तः सुखाय नही अपितु लोक हिताय भावनाओं से युक्त होता है और तभी
रामायण,
महाभारत जैसे ग्रंथ इसे एक आदर्श प्रदान करते हैं तो वहीं संसो , मार्क्स के साहित्य ने समाज को एक दिशा प्रदान की है । तुलसी , सूर , रसखान ने जहाँ भक्ति की धारा बहाई है वहीं बंकिम चंद्र चटर्जी व रविन्द्रनाथ टैगोर ने मातृभूमि पर मर - मिटने का संदेश दिया वहीं प्रेमचंद जैसे महान साहित्यकारों ने समाज को यथार्थवादी दृष्टिकोण प्रदान कर लोक संस्कृति की समस्या व महत्व को हमारे सामने रखने का प्रयास किया । मानवीय मूल्यों का संचार समाज में साहित्य के माध्यम से ही हो सकता है ।
उपसंहार -
बढ़ती पाश्चात्य संस्कृति की चकाचौंध ने हमारे जीवन मूल्यों को प्रभावित किया है । ऐसे दौर में उत्कृष्ट साहित्य रचना ही समाज के उत्थान का मार्ग प्रशस्त कर सकती है । आवश्यक है कि हम साहित्य को नित नये आयाम दें जिसमें हमारी प्राचीन पहचान संसार में अक्षुण रहें और हम अपने पुराने वैभव को प्राप्त कर सकें ।
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